18 Jun 2018
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने पंचायतीराज संस्थाओं के सुदृढ़ीकरण के लिये संविधान के 73वें संशोधन की मूल भावना के अनुरूप पांच विभागों यथा शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, कृषि, महिला एवं बाल विकास और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता का हस्तान्तरण कार्यकलाप ( Functions), स्टाफ व संसाधन ( Functionaries & Funds) के साथ इस भावना से किया था कि आने वाले समय में पंचायतीराज संस्थाएं वास्तविक रूप से एक स्व-शासन इकाई के रूप में गतिशीलता के साथ कार्य कर सके। दुर्भाग्य है कि भाजपा सरकार ने अब तक पंचायतीराज को कमजोर करने का ही काम किया है। राजकीय विभागों द्वारा पंचायतीराज संस्थाओं को सुपुर्द विभागों में इन संस्थाओं के अधिकारों का अतिक्रमण करके स्थानानतरण की कार्यवाही की जा रही है। समस्त कायदे-कानून एवं नीति को ताक में रखकर सत्ताधारी दल के पदाधिकारियों की द्वेषतापूर्ण सिफारिशों के आधार पर तबादले किये जा रहे हैं, जिसमें भ्रष्टाचार की बू भी आ रही है। सरकार के अब तक के कार्यकाल के दौरान पंचायतीराज संस्थाओं को प्रदत्त शक्तियों को दरकिनार करके उन्हें सुपुर्द किये गये विभागों में स्थानान्तरण के मुद्दे को भी अनावश्यक उलझाया जा रहा है। अब राज्य सरकार को दिनांक 11 जून, 2018 को एक आदेश जारी कर पूर्ववर्ती कांग्रेस के समय जारी आदेश का हवाला देते हुए उसी के अनुसार कार्य करने के निर्देश जारी करने पडे़। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने दिनांक 2 अक्टूबर, 2010 को ही आदेश जारी कर पंचायतीराज संस्थाओं को सुपुर्द विभागों के कर्मचारियों के स्थानान्तरण के लिये नीति निर्धारित कर दी थी। पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर स्थानान्तरण का अधिकार पंचायतीराज संस्थाओं को तथा अन्तर्जिला स्थानान्तरण के पूर्ण अधिकार राज्य सरकार के पैतृक विभाग को दे दिये थे, जिन्हें लागू किया जाना चाहिए था। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने पूर्वाग्रह के कारण अन्य निर्णयों की तरह इस निर्णय के प्रति भी आंख मूंद ली, इसी वजह से आज असमंजस की स्थिति बनी हुई है।