16 Aug 2018
क्या ओजस्वी वक्ता, क्या सादगी, क्या विनम्रता, क्या भाषण शैली, क्या काव्य!! बच्चों जैसी निश्छलता और सागर जैसी गंभीरता!! हिमालय जैसी दृढ़ता, तिनके जैसी नश्वरता!! संसद में आप जैसो का सिर्फ़ उपस्तिथ रहना ही अहसास दिला जाता था कि देश के लिए मर मिटने वाले सीमाओं के साथ साथ संसद में भी हैं, राजनीतिक शुचिता के पर्याय थे आप, एक वोट से सरकार जाने के बाद सरकार से त्यागपत्र देते समय आपके जो शब्द थे, वही सार्वजनिक जीवन का सार हैं, "सत्ता का खेल तो चलता रहेगा पार्टियां आएंगी जाएंगी सरकारे बनेंगी बिगड़ेंगी मगर ये देश रहना चाहिए" आप राजनीति नही राष्ट्रनीति के पुरोधा थे! आज राजनीति के क्षितिज से सूर्य हमेशा के लिए अस्त हो गया!! आपके कहे गए एक एक वाक्य, आपकी लिखी गयी एक एक पंक्तियां आपको अमरत्व प्रदान कर गयी!! परम पिता परमेश्वर आपको अपने धाम में स्थान दें! भावपूर्ण श्रधांजलि !!