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    मेवाड़ की धरती पर और आदिवासी क्षेत्र में जब-जब आते है तो हमारे यहाँ का इतिहास याद आता है, जो आपने बनाया है... आपके पूर्वजों ने बनाया है। जिस रूप में संत मावजी महाराज हुए, संत गोविन्द गुरु हुए जिस रूप में वीर बाला कालीबाई हुई, नाना भाई खाट हुए, बड़े-बड़े नेता भीखा भाई भील जो राष्ट्रीय स्तर के नेता बने, हरिदेव जोशी जी मुख्यमंत्री बने, भोगीलाल जी पांड्या हो, गौरीशंकर जी उपाध्याय हो इतनी बड़ी-बड़ी दिग्गज विभूतियाँ हुई है। इस धरती पर मैं अपनी ओर से आप सबकी ओर से राहुल गांधी जी का हार्दिक स्वागत करना चाहता हूँ। आप सभी जानते है इंदिरा जी से लगा करके हमेशा आदिवासियों के प्रति स्नेह रहा है इंदिरा गांधी जी थी तब भी, मुझे याद है जब राजीव गांधीजी प्रधानमंत्री बने तब प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने दौरे शुरू किये आदिवासी क्षेत्र में, डूंगरपुर भी आये थे सोनिया गांधीजी साथ थी उनके। चाहे राजस्थान के आदिवासी हो, चाहे गुजरात के हो, मध्यप्रदेश के हो, उड़ीसा के हो, तमाम जगह प्रधानमंत्री बनते ही पहले वहां गए। इसके मायने ये है प्रधानमंत्री जी पूरे मुल्क को एक सन्देश देना चाहते थे मेरी प्रायोरिटी क्या है, प्रधानमंत्री की प्रायोरिटी क्या है... आदिवासी क्षेत्र जो सबसे पिछड़े है वहां का कल्याण कैसे हो? वहां के लोगो की उन्नति कैसे हो यह सोचके प्रधानमंत्री ने दौरे किये थे आपको याद है। इसलिए आज देश जिस में जो हालात है तो राहुल गांधी जी चाहते है की देश में भाईचारे से, शान्ति से, प्यार से, मोहब्बत से और अहिंसा के माध्यम से राजनीति हो, घृणा की राजनीति नहीं हो ये इनके दिल के अंदर हमेशा रहता है। ये चाहते हैं सभी लोग मिलकर राजनीति करें, विचारधारा की लड़ाई होती है। जो हालात बने हुए हैं वो आपके सामने हैं। मैं इतना ही कहना चाहूंगा कांग्रेस पार्टी ने हमेशा आदिवासियों का ख्याल रखा है। मुझे आपके आशीर्वाद से दो बार मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला। मेरी प्रायोरिटी भी ये एरिया रहा... क्योंकि हमने इंदिरा जी से सीखा, राजीव जी से सीखा, सोनिया जी से सीखा और राहुल जी भी जहां कहीं जाते हैं चाहे वो गुजरात हो चाहे कहीं भी हो उस क्षेत्र में जाते हैं जहां आदिवासी रहते हों। हमने भी अपनी कलम चलाई, आपको याद है अकाल-सूखा पड़ता रहता है। महेन्द्रजीत सिंह मालवीय जी, ताराचंद भगोरा जी जब प्रमुख थे तो दो-दो-ढाई-ढाई लाख मजदूर यहां पर काम करते थे। दो-दो लाख किसे कहते हैं.. कोई सोच सकता है? घर-घर में हमने गेहूं पहुंचा दिए, लगातार तीन अकाल पड़े थे, घर में गेंहूं रखने की जगह नहीं थी वो हालात हमने बनाए थे। वसुंधरा जी कहती थीं कि अशोक गहलोत तो भीख का कटोरा लेकर दिल्ली की सड़कों पर घूम रहा है गेहूं मांगने के लिए। वाजपेयी जी प्रधानमंत्री थे मैंने कहा मुझे गर्व होगा अगर मैं आदिवासियों की, राजस्थान की जनता की भूख मिटा सकूं तो गेंहूं की भीख मांगने में मुझे गर्व होगा.... ये मैंने उस वक्त में कहा था। उन्होंने कहा था भूख से मरेंगे लोग मैंने कहा भूख से मरने की बात तो छोड़ो, हमारी सरकार रहते हुए एक व्यक्ति को भूखा नहीं सोने दूंगा, ये हमारी सोच उस वक्त में थी। हमने कोई कमी नहीं रखी कि कैसे आपके यहां विकास के काम हों। अभी राहुल जी मुझे रास्ते में पूछ रहे थे उसका क्या हुआ जो आपने रेल लाइन लगाने का निश्चय किया सोनिया गांधी जी आई थीं डूंगरपुर के अंदर। रतलाम-बांसवाड़ा-डूंगरपुर रेल लाइन आनी थी उसका क्या हुआ। मैंने कहा राहुल जी वो तो हमने देश के अंदर पहली बार रेलवे को 50% पैसा देना कबूल किया राजस्थान ने कि हमारे आदिवासियों के लिए रेल लाना जरूरी है रेल आएगी, बिजलीघर लगेंगे। दो तीन बिजली घर लगने थे यहां पर उनसे विकास होगा, नौजवानों को काम मिलेगा, आगे बढ़ेंगे इस क्षेत्र के लोग। मैंने राहुल जी को कहा तमाम हमारी स्कीमें जो थीं सरकार बदलते ही ठप्प हो गईं, जंमीनें अक्वायर्ड हो गईं, फैसला नहीं दिया गया, रेलवे के काम का कुछ पता ही नहीं है। इस प्रकार बदले की भावना से जो काम किया गया। ये तो सोनिया गांधी जी का ओर मनमोहन सिंह जी का भला हो जिन्होंने नरेगा लाकर के आपको काम दिया... अब अकाल पड़ो या नहीं पड़ो कम से कम आपको सौ दिन का, अकाल के वक़्त में 150 दिन का काम मिलता है ये पहली बार सोनिया गांधी जी के कारण सम्भव हुआ। फ़ूड सिक्युरिटी एक्ट आया था, देश में गरीबों के लिए दो रुपये किलो गेंहूं, तीन रूपये किलो चावल का प्रावधान किया गया। हमने 10 लाख मकान बनाने का फैसला किया, साढ़े चार-पांच लाख मकान बन चुके थे बाद में पता ही नहीं उस स्कीम का क्या हुआ। इसलिए मैं कहना चाहता हूँ हमारे समय में चाहे बिजलीघर की बात हो, चाहे ब्रॉडगेज लाने की बात हो, रेललाइन की बात हो वो पूरी नहीं हो पाई। गलियाकोट से आनंदपुरी, कुशलगढ़- गढ़ी होकर कितना लंबा रास्ता पड़ता था शानदार पुल बनाकर तैयार हो गया। आज आप आए हो कई लोग उस पुल से आए होंगे अब आप जल्दी पहुँच सकते हो। हमने कोई कमी नहीं रखी कि कैसे आपके यहां काम शुरू हो, देश में पहला विश्वविद्यालय आदिवासियों के नाम से मैंने खोला था उदयपुर के अंदर अब वो बांसवाड़ा में काम कर रहा है। आप सोच सकते हो ये कांग्रेस की सोच थी कांग्रेस नेताओं की सोच थी इस कारण से हमारी प्रायरिटी भी हमेशा ट्राइबल क्षेत्र के विकास की रही।